आजकल के बच्चों को शेड्यूल कास्ट्स और शेड्यूल ट्राइब्स को आरक्षण क्यों दिया जाता है, यह स्पष्ट होना बहुत आवश्यक है। हम अपने आसपास के सामान्य वर्ग के बच्चों को यह कहते अक्सर सुन सकते हैं उनके स्थान पर दलित वर्ग के बच्चे को उनका हक दे दिया गया। इस प्रकार का वे अपना दर्द बयान करते है । उसके बयान के तह में जाना होगा और इस तरह के लाखों बच्चे जो भ्रमित हैं, जिनके मन में दलित वर्ग के प्रति कटुतापूर्ण भ्रम है एवं जो दुर्भाग्यवश शेड्यूल कास्ट्स-शेड्यूल ट्राइब्स को दिए गए आरक्षण को समझ नहीं पाए हैं, उनको समझाने की चुनौती को स्वीकार करना होगा। 
वे बच्चे यह जान ले कि दलित समस्या वास्तव में है क्या ? तो उन्हें यानी दलित वर्ग के लिए आदर और सम्मान के साथ उन्हें आत्मीयता भी देने में पीछे नहीं हटेंगे। इस सन्दर्भ में विषय को और भी स्पष्ट करने के लिए डॉ. भीम राव अम्बेडकर का स्वतंत्रता संग्राम के मध्य हुई एक घटना का उल्लेख है। संविधान सभा में आरक्षण पर बहस चल रही थी। श्री गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा कि आरक्षण से अयोग्य लोग आ जाएंगे, जिससे शासन चलाने में कठिनाई आएगी,  इसका डॉ अंबेडकर ने जवाब देते हुए  कहा कि आरक्षण योग्य या अयोग्य का पैमाना नहीं है। राष्ट्र निर्माण में प्रत्येक वर्ग के प्रतिनिधित्व का मामला है। उनका कहना था कि योग्यता की बात करते है तो अंग्रेज तो बहुत योग्य है, तो उनका विरोध क्यों? इसलिए आरक्षण का योग्यता से नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलने से सम्बन्ध है। साथ चलने से साथ साथ रहने समानता और बंधुत्व बढ़ेगा और आपस में आत्मीयता भी आएगी। 
 इस संदर्भ में संक्षिप्त में मैं इतना कहना चाहूंगा कि दलित वर्ग के लोग गरीब, अशिक्षित अत्यंत पिछड़े ही केवल नहीं होते बल्कि वे अस्पृश्य एवं सामाजिक व्यवस्था में सबसे निम्न होते हैं। यह निर्धारन समाज ने किया है। उनके प्रति यह व्यवहार समाज ने सुनिश्चित किया है, जो उचित नहीं है। और यह अज्ञानतावश अकारण एवं षड्यंत्रयुक्त लगता है। लगभग आठ सौ बर्षों से यह दुर्भाग्यपूर्ण कुकृत्य कुछ लोगों के साथ हुआ। स्वाभिमानी और धर्माभिमानी हिंदू योध्दाओ को उनके राष्ट्राभिमान और धर्माभिमान की सजा मुगल काल में उन्हें मिला। वे भी ब्राह्मण और क्षत्रिय ही थे। इस्लाम न स्वीकार करने के कारण भारी अत्याचार, व्यभिचार. उत्पीड़न, दमन एवं दलन के उपरांत उनका स्वभिमान और धर्माभिमान भंग करके उन्हें अस्वच्छ कार्य जैसे मैला ढोने एवं चर्म कर्म में लगाकर अस्पृश्य यानी अछूत बना दिया। स्वच्क्षता एवं पवित्रता की अवधारणा पर आलम्बित हिन्दू समाज में अज्ञानतावश उन्हें अलग थलग करके उनकी एक निम्न एवं अछूत श्रेणी की जातियों का निर्धारण कर दिया। आज आठ सौ बर्षों बाद दलित के रूप मे वे ही जातिया चिन्हित हैं। 
आज सामान्य वर्ग में उनके प्रति जो स्थापित मानसिकता है , वह उन्हें निम्न समझते है जबकि इसका आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक इत्यादि समस्या से कोई लेना देना नहीं है। अस्पृश्य होने की तह में उनकी आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक इत्यादि कारण नहीं है। उन्हें तो मुगल काल में उनके स्वाभिमान, धर्माभिमान एवं राष्ट्राभिमान का दंड देने के स्वरुप में अस्वच्क्ष एवं अपवित्र काम दिए गए। यदि वे खुद मुगल अथवा मुस्लिम शासकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर देते तो आज मुसलमान वर्ग में होते। 
वास्तव में एक ब्राह्मण भी निर्धन हो सकता है । आवास रहित हो सकता है। कपड़े का उसको भी आभाव हो सकता है, यानी मूलभूत आवश्यकता की वस्तुएं वस्तुओं से वंचित हो सकता है । और ऐसा ही अन्य जातियों यानी क्षत्रिय, वैश्य या पिछड़े वर्ग की जातियों की भी स्थिति है। परन्तु क्या कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या अन्य सामान्य वर्ग या पिछड़ी जाति के लोग दलित हो सकते हैं ?
दलित का मतलब  सामाजिक व्यवस्था में निम्न एवं अस्पृश्य माना जाता है। यह सामान्य लोगों की स्थापित मानसिकता यानी माइन्ड सेट है। यदि यह बदल जाय तो आरक्षण का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा। फिर दलितों को आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। जब तक समाज में आत्मियता स्थापित नहीं हो जाती,तब तक तो हमें प्रतिक्षा करना ही होगा। हमे अपने बच्चों को भी यह समझाना होगा। उनके भ्रम को तोड़ना ही होगा। दलितों ने तात्कालिक विदेशी आक्रांताओं और शासकों के कारण जो आज की स्थिति में पहुंचे और दलित की पहचान पाए, इसे अपने बच्चों को समझाने की जरुरत है। उनके तथा समाज के माइन्ड सेट को बदलना ही होगा। समाज हित और देश हित में भी यह आवश्यक है।
और अंत में, डॉ बी आर अम्बेडकर की पुस्तक ‘हू वेयर शुद्राज’ का एक अत्यंत प्रामाणिक उदाहरण विषय की अत्यधिक स्पष्टता की दृष्टि से देखना होगा। इस पुस्तक के प्राक्कथन के प्रथम पृष्ठ के तीसरे पैराग्राफ में डॉ अम्बेडकर ने यह उल्लेख किया है कि भारत के वर्तमान दलित तो प्राचीन या वैदिक कालीन शूद्र है ही नहीं। इसलिए शूद्रों के लिए बने नियम-कानून उनपर लागू नहीं होते। और इसी तरह डॉ अम्बेडकर के भी पहले 1872  में प्रकाशित एक पुस्तक ‘हिन्दू कास्ट एंड ट्राइब्स इन बनारस’, जिसके लेखक है प्रो. एम ए शेरिंग, ने लिखा है कि भारत की जो दलित जातियां है, वह सब ब्राह्मण एवं क्षत्रिय ही है। इसलिए आज आरक्षण को स्वाभिमानी एवं धर्माभिमानी जातियों, जो कतिपय कारणों से आज दीन-हीन एवं दलित बन गयी है, उनके लिए शासन एवं सत्ता में भागीदारी का अवसर माना जाए। आज योग्यता एवं अयोग्यता के स्थान पर इसे सबका साथ-सबका विकास के रूप में व्यावहारिक रूप एवं बड़े मन से स्वीकार किया जाए।